पहलगाम में हुए 22 April आतंकी हमले की जांच अब औपचारिक रूप से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने अपने हाथ में ले ली है। एजेंसी ने घटनास्थल से मिले विडियोज, फोटोज और अन्य डिजिटल साक्ष्यों की गहन जांच शुरू कर दी है। साथ ही, घटना के समय वहां मौजूद परिवारजनों, स्थानीय होटल मालिकों, टैक्सी चालकों और अन्य चश्मदीदों से पूछताछ की जा रही है ताकि हमले की साजिश से जुड़े हर पहलू को समझा जा सके।
दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय मीडिया, विशेष रूप से पाकिस्तान की मीडिया में इस घटना को लेकर भ्रामक बयानबाज़ी देखी जा रही है। पाकिस्तानी मीडिया का दावा है कि हमले में जिस एम-4 कार्बाइन हथियार का इस्तेमाल हुआ, वह अमेरिका निर्मित है और इसी तरह का हथियार ज़फर एक्सप्रेस हमले में भी उपयोग हुआ था। और अमरिका की आर्मी अफगान वार के समय वहां छोड़ कर गई थी, इसके आधार पर वे भारतीय खुफिया एजेंसियों पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं। साथ ही, वे भारत द्वारा कश्मीर में गैर-कश्मीरी नागरिकों को बड़ी संख्या में डोमिसाइल देने को भी क्षेत्र में अस्थिरता का कारण बता रहे हैं।
हालांकि, इन आरोपों से पाकिस्तान की मंशा और उसकी संलिप्तता पर सवाल उठते हैं। यह हमला 1992-93 में बाबरी मस्जिद के बाद कश्मीर में हुई टारगेट हत्याओं की याद दिलाता है, जब आतंक का प्रयोग सामुदायिक तनाव भड़काने के लिए किया गया था।
इस बार भारत सरकार आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई के मूड में है। वैश्विक मंचों पर भी भारत को इस हमले के बाद व्यापक समर्थन मिल रहा है। इसके विपरीत, पाकिस्तान अपने पुराने रवैये पर कायम रहते हुए भारत को भड़काने की कोशिश कर रहा है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस हमले के बाद पहली बार घाटी के आम कश्मीरी मुस्लिम भी खुलकर आतंकवाद के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। बाजार बंद कर शांति का संदेश देने वाले स्थानीय नागरिकों के साथ-साथ, वे नेता जो कभी आतंक को लेकर नरम रुख रखते थे—जैसे महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और कुछ पूर्व चरमपंथी धर्मगुरु—अब इस हमले की सार्वजनिक रूप से निंदा कर रहे हैं।
यह घटना न केवल घाटी के जनजीवन बल्कि रोजगार और पर्यटन पर भी प्रतिकूल असर डालने वाली है। अनुच्छेद 370 और 35A हटने के बाद जो विकास गति पकड़ रहा था, उस पर अब अस्थायी प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन यह स्पष्ट है कि कश्मीर अब आतंक को अस्वीकार कर रहा है और स्थायी शांति की ओर बढ़ना चाहता है।.
जयंत कुमार पाण्डेय, संवाददाता