Bihar Election 2025: कांग्रेस को लालू पर भरोसे से ज़्यादा फिक्र, दोहराए न जाए लोकसभा जैसा हाल

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यहाँ आपके दिए गए लेख का एक परिष्कृत (modified), स्पष्ट और पत्रकारिता की शैली में व्यवस्थित संस्करण प्रस्तुत किया गया है। इसमें मूल भाव और तथ्यों को बनाए रखते हुए भाषा को थोड़ा और पेशेवर और धारदार बनाया गया है:


Bihar Election 2025: कांग्रेस को लालू यादव पर शंका, कहीं लोकसभा जैसा हाल न दोहराए बिहार में

बिहार विधानसभा चुनाव में अभी करीब सात महीने बाकी हैं, लेकिन सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है। देश के गृह मंत्री अमित शाह बिहार का दौरा कर चुके हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी महीने आने वाले हैं और उससे पहले 7 मार्च को विपक्ष के नेता राहुल गांधी का बिहार दौरा प्रस्तावित है। कांग्रेस जिला स्तर पर उनके कार्यक्रम के लिए तैयारियों में जुटी है।

इसी बीच, बिहार कांग्रेस के नए प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने शनिवार को दिल्ली एम्स पहुंचकर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का हालचाल लिया। यह मुलाकात भले ही शिष्टाचार के तहत हुई हो, लेकिन कांग्रेस के भीतर लालू यादव को लेकर गहरी आशंका है।

कांग्रेस को याद है लोकसभा चुनाव की टीस

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जिस तरह सीटों को लेकर असमंजस में रही और राजद ने अपने स्तर पर उम्मीदवारों को टिकट देना शुरू कर दिया, वही स्थिति दोहराए जाने का डर कांग्रेस को सता रहा है। दिल्ली में राहुल गांधी की मौजूदगी में हुई बिहार कांग्रेस नेताओं की बैठक में कई जिलाध्यक्षों ने यह मुद्दा इशारों में उठाया — कि पार्टी को पहले से तय करना चाहिए कि कौन-कौन सी सीटों पर लड़ा जाएगा।

कांग्रेस का मानना है कि तेजस्वी यादव से तो संवाद हो भी सकता है, लेकिन लालू यादव से डील करना “टेढ़ी खीर” है। यह बात तब और पुख्ता हुई जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दरकिनार करते हुए लालू ने एकतरफा रूप से उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी।

लालू की रणनीति और कांग्रेस की सीमाएं

जब बिहार में महागठबंधन सरकार थी, तब कांग्रेस ने सरकार में दो अतिरिक्त मंत्रीपद की मांग की थी। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें तेजस्वी यादव के हवाले कर दिया। कांग्रेस न तो तेजस्वी से समझौता कर सकी और न ही सीटों पर पकड़ बना सकी।

लालू यादव का राजनीतिक कद ऐसा है कि कांग्रेस लंबे समय से उनके इशारे पर चलने को मजबूर है। जब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं, तब भी कांग्रेस सीमित भूमिका में थी। नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार के सामने भी वही चुनौती है—क्या वे लालू के सामने अपनी बात रख सकेंगे?

टिकट बंटवारे की पुरानी पीड़ा

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के नेता पप्पू यादव पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन लालू ने बीमा भारती को उस सीट से टिकट दे दिया। अन्य कई उदाहरणों में भी बिना कांग्रेस की सहमति के राजद ने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी — गया से कुमार सर्वजीत, नवादा से श्रवण कुशवाहा, जमुई से अर्चना रविदास जैसे नामों की सूची कांग्रेस को केवल अखबारों से पता चली।

कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष को लालू से मिलकर यह अपील करनी पड़ी कि बिना समन्वय टिकट न बांटे जाएं, लेकिन नतीजा सिफर रहा।

आगे की राह

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट नहीं है। क्या वह एक बार फिर राजद के फैसलों के सामने नतमस्तक होगी, या इस बार कुछ ठोस शर्तों और सीटों के साथ अपनी स्थिति मजबूत करेगी?

लोकसभा चुनाव जैसा अनुभव दोहराया गया तो कांग्रेस के लिए बिहार की ज़मीन और भी संकरी हो सकती है।


यदि आप चाहें, तो मैं इस लेख का एक छोटा संस्करण प्रेस रिलीज़ या सोशल मीडिया पोस्ट के रूप में भी तैयार कर सकता हूँ।

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