सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: भर्ती विवादों में हाईकोर्ट न करें हस्तक्षेप, वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो तो पहले जाएं न्यायाधिकरण
सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती विवादों को लेकर एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि जब किसी वैधानिक न्यायाधिकरण (Statutory Tribunal) के पास प्रभावी वैकल्पिक उपाय मौजूद हो, तो हाईकोर्ट को सीधे रिट याचिकाओं पर विचार नहीं करना चाहिए। अदालत ने कहा कि भर्ती विवाद जैसी परिस्थितियाँ “असाधारण श्रेणी” में नहीं आतीं, जिनमें उच्च न्यायालय को तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता हो।
यह फैसला जस्टिस जे. के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की दो-न्यायाधीशीय पीठ ने सुनाया। पीठ कर्नाटक में 15,000 स्नातक प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती से जुड़े विवादों पर दायर कई अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। यह विवाद मुख्य रूप से विवाहित महिला अभ्यर्थियों द्वारा प्रस्तुत जाति प्रमाण पत्रों को लेकर उत्पन्न हुआ था, जिससे ओबीसी श्रेणी में उनके चयन पर प्रभाव पड़ा।
पृष्ठभूमि: कर्नाटक में भर्ती और जाति प्रमाण पत्र विवाद
कर्नाटक के लोक शिक्षा विभाग ने 21 मार्च 2022 को शिक्षक भर्ती की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत मई 2022 में परीक्षा आयोजित की गई और 18 नवंबर 2022 को अस्थायी चयन सूची प्रकाशित की गई। इस सूची में कई विवाहित महिलाओं को ओबीसी श्रेणी से बाहर कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने अपने पति की बजाय अपने पिता के नाम पर जाति-सह-आय प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए थे। परिणामस्वरूप उनके नाम सामान्य श्रेणी की मेरिट सूची में आ गए, जिससे चयन की संभावना प्रभावित हुई।
इन अभ्यर्थियों ने इस कार्रवाई को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि किसी महिला की जाति और क्रीमी लेयर का निर्धारण उसके माता-पिता की स्थिति से होना चाहिए, न कि उसके पति की सामाजिक या आर्थिक स्थिति से। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 30 जनवरी 2023 को इस तर्क से सहमति जताई और सरकार की अस्थायी सूची को रद्द कर दिया। अदालत ने राज्य को प्रभावित अभ्यर्थियों को ओबीसी वर्ग में शामिल करने का निर्देश दिया।
सरकार की नई सूची और फिर विवाद
हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने 27 फरवरी 2023 को नई चयन सूची जारी की और 8 मार्च 2023 को अंतिम सूची प्रकाशित की। इस नई सूची में पहले से चयनित 451 उम्मीदवारों को बाहर कर दिया गया। इसके खिलाफ अनेक अपीलें दायर हुईं, जिन पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 12 अक्टूबर 2023 को सुनवाई की। खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश का फैसला रद्द कर दिया और कहा कि इस प्रकार के सेवा विवाद प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 के तहत स्थापित राज्य न्यायाधिकरण के क्षेत्राधिकार में आते हैं। अदालत ने राज्य सरकार को भर्ती प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति भी दी, जबकि अभ्यर्थियों को न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी बात रखने की छूट दी गई।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और संवैधानिक आधार
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहाँ यह प्रश्न उठा कि क्या जब न्यायाधिकरण का विकल्प उपलब्ध हो, तब भी हाईकोर्ट को ऐसे मामलों में रिट याचिका सुननी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने खंडपीठ के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि भर्ती विवादों में सीधे हाईकोर्ट का हस्तक्षेप अनुचित है। अदालत ने एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ (1997) के ऐतिहासिक निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि सेवा न्यायाधिकरण इन मामलों में प्रथम दृष्टया न्यायिक मंच होते हैं, और हाईकोर्ट की भूमिका न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) तक सीमित रहनी चाहिए।
पीठ ने कहा, “यदि किसी वैधानिक न्यायाधिकरण के पास प्रभावी वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है, तो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना उचित नहीं है। भर्ती विवाद जैसी स्थितियाँ असाधारण परिस्थितियों में नहीं आतीं।”
महत्व और प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कर्नाटक के शिक्षक भर्ती विवाद पर असर डालेगा, बल्कि देशभर के उन मामलों में भी मिसाल बनेगा जहाँ याचिकाकर्ता सीधे हाईकोर्ट का रुख करते हैं। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि प्रशासनिक न्यायाधिकरणों की भूमिका को कमतर आंकना संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
यह आदेश भविष्य में सेवा मामलों से जुड़े विवादों के निपटारे की प्रक्रिया को अधिक सुव्यवस्थित करेगा और न्यायपालिका पर अनावश्यक बोझ को कम करने में मदद करेगा।

